भारतीय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नवग्रहों में शनि ग्रह (shani dev) की एक महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यह ग्रह मानव जीवन के कई अहम पहलुओं पर अपना सीधा सीधा असर डालता है। सामान्यतः लोगों में इसके बारे में कम जानकारी होने के कारण भय उत्पन्न हो जाता है। आज हम आपको शनि ग्रह से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण व सामान्य आदतों से अवगत कराएंगे जिससे कि शनिदेव शीघ्र प्रसन्न होते हैं, व जातक को शुभ फल देते हैं।
29 अप्रैल 2022 से शनिदेव अब ढाई वर्ष तक कुंभ राशि में गोचर कर रहे हैं। कुंभ राशि में परिवर्तन से सभी राशियों पर इसका असर देखने को मिलेगा। कई लोग शनि की साढ़ेसाती, ढैया या महादशा के लगने पर भयभीत हो जाते हैं लेकिन शनिदेव से डरने की जरूरत नहीं, बल्कि उन्हें समझने की जरूरत है।

- शनि की साढ़ेसाती साढ़े सात (7 वर्ष 6 माह) साल की, ढैया ढाई साल ( 2 वर्ष 6 माह) की और महादशा 19 साल की होती है। इस दौरान शनि जातक को राजा से रंक और रंक से राजा बना सकते हैं।
- शनि 12 राशि की परिक्रमा 29 वर्ष 5 माह 17 दिन 5 घंटों में पूर्ण करता है। शनि 140 दिन वक्री रहता है और मार्गी होते समय 5 दिन स्तंभित रहता है।
- शनि जब किसी राशि पर भ्रमण करता है, उस वक्त वह अपनी वर्तमान राशि, पिछली राशि, अगली राशि, तीसरी राशि, दसवीं राशि, बारहवी राशि और शनि स्वयं की राशि मकर और कुंभ राशि को पूर्ण दृष्टि से देखता है।
- शनि साढ़ेसाती का प्रभाव तीन चरणों में देता है, पहला चरण साढ़े 7 सप्ताह से साढ़े 7 वर्ष तक रहता है। पहले चरण में शनि जातक की आर्थिक स्थिति पर, दूसरे चरण में पारिवारिक जीवन और तीसरे चरण में सेहत पर सबसे ज्यादा असर डालता है। ढाई-ढाई साल के इन 3 चरणों में से दूसरा चरण सबसे भारी पड़ता है। पहला चरण धनु, वृषभ, सिंह राशियों वाले जातकों के लिए कष्टकारी, दूसरा चरण सिंह, मकर, मेष, कर्क, वृश्चिक राशियों के लिए कष्टकारी और आखिरी चरण मिथुन, कर्क, तुला, वृश्चिक, मीन राशि के लिए कष्टकारी माना गया है।
- शनि की साढ़े साती का सबसे बुरा प्रभाव छठे, आठवें और बारहवें भाव में माना गया है। मकर, कुंभ, धनु और मीन लग्न में साढ़ेसाती का प्रभाव उतना बुरा नहीं होता जितना कि अन्य लग्नों में होता है।
इन आदतों से शनि देव होते हैं प्रसन्न ( Habits to make shani dev happy)
- खुद को साफ सुथरा और पवित्र बनाकर रखें। समय समय पर नाखून, बाल काटते रहें व सूर्योदय स्नान का नियम बनाएं।
- पशु और पक्षियों के लिके प्रति प्रेम पूर्ण व्यवहार करें।
- हनुमान चालीसा का नित्य पाठ व राम नाम जप करते रहें।
- काले कुत्ते को तेल लगाकर रोटी खिलाएं।
- भैरव मंदिर में कच्चा दूध अर्पित करें।
- जरूरतमंदों की सहायता करते रहें व सामर्थ्य अनुसार अन्न, जल या वस्त्र दान करते रहें।
- अंधों, कुष्ट रोगियों और लंगड़ों को भोजन कराते रहें।
- शनिवार के दिन छाया दान ( कांसे के कटोरे में सरसों या तिल के तेल से भरकर उसमें अपना चेहरा देखकर दान ) करते रहें।
- कौवों को रोटी खिलाते रहें।
- श्राद्ध कर्म और तर्पण करते रहें।
- तीर्थ क्षेत्र में स्नान या दान करते रहें।
- शनिवार को पीपल के वृक्ष में दीपक जलाएं और उसकी पूजा परिक्रमा करें।
- गुरु, माता-पिता, धर्म और देवाताओं का सम्मान करें।
- पारिवारिक भरण-पोषण के लिए ईमानदारी और मेहनत से कमाए धन का सदुपयोग करें।
- ब्याज का धंधा करना, नशा करना, पराई स्त्री को देखना और किसी को सताने जैसे बुरे कर्म से दूर रहें।
- जरूरतमंदों को छाता और पंखा दान करें। साथ ही शनिवार को शनि मंदिर में शनि से संबंधित वस्तुओं का दान करें।
- पौधा रोपण करते रहें। धर्म में बताएं गए पंच वृक्षों में से कोई एक वृक्ष लगाएं।
- मछलियों को दाना डालते रहें।
- महिलाओं का सम्मान करें।
- शनिवार का उपवास रखें या शनिवार के दिन लोगों की मदद करने का नियम बनाएं।
- नाभि, दांत, बाल और आंतों को अच्छे से साफ-सुधरा रखें।
- व सोते वक्त नाभि में गाय का घी लगाएं।
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